वांछित मन्त्र चुनें

अ॒वः परे॑ण प॒र ए॒नाव॑रेण प॒दा व॒त्सं बिभ्र॑ती॒ गौरुद॑स्थात्। सा क॒द्रीची॒ कं स्वि॒दर्धं॒ परा॑गा॒त्क्व॑ स्वित्सूते न॒हि यू॒थे अ॒न्तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avaḥ pareṇa para enāvareṇa padā vatsam bibhratī gaur ud asthāt | sā kadrīcī kaṁ svid ardham parāgāt kva svit sūte nahi yūthe antaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒वः। परे॑ण। प॒रः। ए॒ना। अव॑रेण। प॒दा। व॒त्सम्। बिभ्र॑ती। गौः। उत्। अ॒स्था॒त्। सा। क॒द्रीची॑। कम्। स्वि॒त्। अर्ध॑म्। परा॑। अ॒गा॒त्। क्व॑। स्वि॒त्। सू॒ते॒। न॒हि। यू॒थे। अ॒न्तरिति॑ ॥ १.१६४.१७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:164» मन्त्र:17 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:17


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर पृथिव्यादिकों के कार्यकारण विषय को कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (वत्सम्) उत्पन्न हुए मनुष्यादि संसार को (बिभ्रती) धारण करती हुई (गौः) गमन करनेवाली जिस (परेण) परले वा (अवरेण) उरले (पदा) प्राप्त करनेवाले गमनरूप चरण से (अवः) नीचे से (उदस्थात्) उठती है (एना) इससे (परः) पीछे से उठती है जो (यूथे) समूह के (अन्तः) बीच में (कम्, स्वित्) किसीको (अर्द्धम्) आधा (सूते) उत्पन्न करती है (सा) वह (कद्रीची) अप्रत्यक्ष गमन करनेवाली (क्व, स्वित्) किसी में (नहि) नहीं (परा, आगात्) पर को लौट जाती ॥ १७ ॥
भावार्थभाषाः - यह पृथिवी सूर्य से नीचे ऊपर और उत्तर दक्षिण को जाती है। इसकी गति विद्वानों के विना न देखी जाती। इसके परले आधे भाग में सदा अन्धकार और उरले आधे भाग में प्रकाश वर्त्तमान है बीच में सब पदार्थ वर्त्तमान हैं, सो यह पृथिवी माता के तुल्य सबकी रक्षा करती है ॥ १७ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः पृथिव्यादीनां कार्यकारणविषयमाह ।

अन्वय:

या वत्सं बिभ्रती गौर्येन परेणाऽवरेण च पदाऽव उदस्थात्। एना परः परस्ताच्चोद्गच्छति या यूथेऽन्तः कं स्विदर्द्धं सूते सा कद्रीची क्व स्विन्नहि पराऽगात् ॥ १७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अवः) अधस्तात् (परेण) (परः) (एना) एनेन (अवरेण) अर्वाचीनेन (पदा) प्रापकेन गमनरूपेण (वत्सम्) प्रसूतं मनुष्यादिकं संसारम् (बिभ्रती) धरन्ती (गौः) गच्छतीतिः गौः पृथिवी (उत्) (अस्थात्) तिष्ठति (सा) (कद्रीची) अचाक्षुष्यगमना (कम्) (स्वित्) (अर्द्धम्) भागम् (परा) (आगात्) गच्छति (क्व) कस्मिन् (स्वित्) (सूते) उत्पादयति (नहि) निषेधे (यूथे) समूहे (अन्तः) मध्ये ॥ १७ ॥
भावार्थभाषाः - इयं पृथिवी सूर्यादध ऊर्ध्वं दक्षिणमुत्तरतश्च गच्छति। अस्या गतिर्विदुषोऽन्तरा न लक्ष्यते। अस्याः परेऽर्द्धे सदाऽन्धकारः पूर्वेऽर्द्धे प्रकाशश्च वर्त्तते मध्ये सर्वे पदार्था वर्त्तन्ते, सेयं पृथिवी जननीव सर्वान् पाति ॥ १७ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ही पृथ्वी सूर्याच्या खाली, वर व उत्तर-दक्षिणेकडे जाते. तिची गती विद्वानाशिवाय कोणी जाणू शकत नाही. तिच्या एका बाजूला सदैव अंधार व दुसऱ्या अर्ध्या बाजूला प्रकाश असतो. मध्यभागी सर्व पदार्थ विद्यमान असतात. त्यामुळे ही पृथ्वी मातेप्रमाणे सर्वांचे रक्षण करते. ॥ १७ ॥